आज न जाने क्या मर्जी है..
सुबह के रंग खिलते खिलते शाम में खो गए ,
शाम में ढलते ढलते सुबह हो गए
पंछियो के जो फूटे गीत,
उठते उठते आसमान बन गए !
आज बस खाली खाली बैठे बैठे ,
भीतर से भर गए
कुछ न कहे,
बस आसु बह गए
बहते बहते, दिल के साथ
न जाने और क्या क्या ले गए
अब कैसे कहे की क्या मर्जी है।
ये फूल अभी नए है
खिलने से भी डरते है
ये शब्द अभी नए है
होटो से शरमाते है
तो कैसे बताये क्या मर्जी है।
हैरान,
बस हैरान इस बेहोशी से
और हैरानी से बेहोश
अब होश ना आये तो ही बेहतर
क्यों की न जाने किसकी मर्जी है
सुबह के रंग खिलते खिलते शाम में खो गए ,
शाम में ढलते ढलते सुबह हो गए
पंछियो के जो फूटे गीत,
उठते उठते आसमान बन गए !
आज बस खाली खाली बैठे बैठे ,
भीतर से भर गए
कुछ न कहे,
बस आसु बह गए
बहते बहते, दिल के साथ
न जाने और क्या क्या ले गए
अब कैसे कहे की क्या मर्जी है।
ये फूल अभी नए है
खिलने से भी डरते है
ये शब्द अभी नए है
होटो से शरमाते है
तो कैसे बताये क्या मर्जी है।
हैरान,
बस हैरान इस बेहोशी से
और हैरानी से बेहोश
अब होश ना आये तो ही बेहतर
क्यों की न जाने किसकी मर्जी है
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